संसार कल्पब्रृक्ष है इसकी छाया मैं बैठकर हम जो विचार करेंगे ,हमें वेसे ही परिणाम प्राप्त होंगे ! पूरे संसार मैं अगर कोई क्रान्ति की बात हो सकती है तो वह क्रान्ति तलवार से नहीं ,विचार-शक्ति से आएगी ! तलवार से क्रान्ति नहीं आती ,आती भी है तो पल भर की, चिरस्थाई नहीं विचारों के क्रान्ति ही चिरस्थाई हो सकती है !अभिव्यक्ति ही हमारे जीवन को अर्थ प्रदान करती है। यह प्रयास है उन्ही विचारो को शब्द देने का .....यदि आप भी कुछ कहना चाहते है तो कह डालिये इस मंच पर आप का स्वागत है….
" जहाँ विराटता की थोड़ी-सी भी झलक हो, जिस बूँद में सागर का थोड़ा-सा स्वाद मिल जाए, जिस जीवन में सम्भावनाओं के फूल खिलते हुए दिखाई दें, समझना वहाँ कोई दिव्यशक्ति साथ में हें ।"
चिट्ठाजगत

शुक्रवार, 27 मार्च 2009

देखा जब हमने

देखा जब हमने आसमान को तो अफ़साने बदल जाते है
सोचता हूँ एक हसीन शाम तो सितारे बदल जाते है
राह पे बैठे थे हम नज़रे बिछाये किसीकी
पर वो है कि कम्बक्त रास्ते बदल जाते है

याद आती है उनकी आँसू भी आती है पलको पर
पर हर सुबह की शुरुआत मे इरादे बदल जाते है
दिल की आरजू है वो भी कभी चुप के से देखे हमे
पर उनकी हर अदा मे उनके इशारे बदल जाते है

रखा था हमने उनको दिल के करीब बहुत करीब
पर वो आते ही नही यह ज़माने बदल जाते है
कहते है इंतज़ार एक मलहम है दर्द-ए-दीवानगी का
पर कभी कभी इंतज़ार में दीवाने बदल जाते है

अगर तकनी ही है राह किसी की तो
मौत का तको बेवफा नही वो उस ज़ालिम का तरह
पर फिर भी कुछ कह नही पाते
ज़ालिम दुनिया मे तो ज़नाजे तक बदल जाते है

देखा जब हमने आसमान को तो अफ़साने बदल जाते है
सोचता हूँ एक हसीन शाम तो सितारे बदल जाते

1 टिप्पणियाँ:

Unknown 27 मार्च 2009 को 10:46 am बजे  

आपकी पहले की भी रचनाएं पढी है । यह रचना बेहद सुन्दर बन पड़ी है । गजल के बराबर ही ।

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