मैं चाहती हूँ
इन अश्कों को छुपना चाहती हूँ
तेरे याद को दिल से मिटाना चाहती हूँ ।
तुझे देख कर जो मुझे अहसास होता है
मैं उस से अब पीछे छुड़ाना चाहती हूँ ।
तुम्हारी यादों से तुम्हारी बातों से
अब में बहुत दूर जाना चाहती हूँ ।
खयालो की दुनिया से ख्वबो की दुनिया से
अब में बाहर निकालना चाहती हूँ ।
थक गई हूँ इन कांटों भरी राह पे चलते चलते
अब में कुछ दैर आराम करना चाहती हूँ ।
पर कैसे भला दूँ ए दिल_ए_नादान उस को
जिसे मैं इतना चाहती हूँ........
8 टिप्पणियाँ:
निष्ठुत भी और कोमल भी? सुन्दर रचना. आभार.
निष्ठुर भी और कोमल भी? सुन्दर रचना. आभार.
दिल के हालातों को बहुत ही संजीदगी से पेश किया है आपने
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
प्यार को कभी भुलापाना आसान नही सुंदर रचना है
bhawnao ko bakhubi baan kiya hai,bahut hi sunder
Nice poem.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
sungar abhiwaukti
ye rachna mere dil ko chu gaye...............
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