कैसे कहें ??
रूठ गया है ......
मुझको मानने वाला !!
अब कोई नही .........
नाज़ मेरा उठाने वाला !!
पर जाने क्या सोंचता है ?
यह खुला दरवाज़ा .......
शायद ................!!
रास्ता भूल गया, आने वाला !!
माना तेरी नज़र में ........
तेरा प्यार हम नही ।
कैसे कहें के तेरे ....
तलबगार हम नही।
खुद को जला के खाक कर डाला....................
मिटा दिया,
लो अब तुम्हारी राह में ...........
दीवार हम नही!!
जिस को सावरा ...........
हमने हसरतौ के खून से।
गुलशन में उस बाहर के ...........
हक़दार हम नही।
धोखा दिया है ............
खुद को मुहब्बत के नाम से .............!!
कैसे कहें ??
कैसे कहें के ....
के तेरे गुनह्गार हम नही।।
3 टिप्पणियाँ:
nice one
बहुत ही ख़ूबसूरत कविता.
ati sundar rachna hai aap ki
best of luck
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